शीतकाल में कुएँ का जल गरम और ग्रीष्मकाल में ठंडा क्यों निकलता है?
जल के असामान्य गुणों के कारण इसे उत्केन्द्रक द्रव कहा जाता है। इसमें ऊष्मा अवशोषित करने की क्षमता अधिक होती है। परन्तु इसका तापमान अन्य द्रवों की भांति शीघ्रता से नहीं बढ़ता। दिन में भूमि जल की तुलना में शीघ्रता से गरम हो जाती है और रात्रि में शीघ्रता से ही ठंडी हो जाती है। शीतकाल में वातावरण ठंडा हो जाता है, परन्तु जल से ऊष्मा का हास धीरे-धीरे होता है। जल की विशिष्ट ऊष्मा पृथ्वी की विशिष्ट ऊष्मा से दस गुणा अधिक होती है। द्रव जल के अणुओं के मध्य प्रबल बंधुता होती है जिनको तोड़ने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। गरम करने से ये बंधुता टूट जाती है। परन्तु जब यह पुनः स्थापित होती हैं तो ऊष्मा निकलती है।
पृथ्वी की 30 कि0 मी0 मोटी पपड़ी में छिद्र करके कूप खोदे जाते हैं। जब छिद्र जलस्तर से अधिक गहरा हो जाता है तो इसमें जल रिसना आरम्भ हो जाता हैं कुएँ में जल की सतह पर वायु सरलता से संचालित नहीं होती और कुएँ के जल से ऊष्मा की हानि नदी व तालाब के जल की अपेक्षा कम होती है। शीतकाल में जल की ऊपरी सतह ठंडी हवा से शीतल हो जाती है। ठंडा जल नीचे वाले गरम जल से अधिक भारी होता है। इसलिए ऊपरी सतह का ठंडा जल नीचे वाले गरम जल से प्रतिस्थापित हो जाता है। इस प्रकार कूप का जल संवाहन प्रक्रम द्वारा थोड़ा-सा ठंडा हो जाता है।