ऊँचाई से नीचे देखने पर चक्कर क्यों आते हैं?
यदि संतुलन-बोध में थोड़ी-सी गड़बड़ हो जाती है तो घुमेर या मतली होने लगती है। चक्कर आना एक मनोभाव है जो साम्यावस्था बनाए रखने वाले शारीरिक-क्रियात्मक उपकरण में खलबली का परिणाम है।
नेत्रों से प्राप्त संवेदन, अन्तःकरण तथा त्वचीय पेशियों से प्राप्त संवेदन का सहारा हम प्रायः किसी वस्तु की स्थिति के निर्धारण व अनुकूलन के लिए लेते हैं। जब मस्तिष्क में विरोधी चेतावनियाँ व रासायनिक संदेश इस संतुलन-प्रणाली में किसी एक मुख्य संवेदन के अतिरिक्त पहुँचने लगते हैं तो तीनों संवेदन के अतिरिक्त पहुँचने लगते हैं तो तीनों संवेदनों के तालमेल से बनी सामान्य अवस्था में गड़बड़ हो जाती है जिसके कारण मतली होने लगती है।
ऊँचाई से नीचे देखने पर नेत्र उपकरण तो अतिरिक्त रूप से उत्तेजित हो जाता है, परन्तु कान की अंदरूनी त्वचा, पेशियाँ व शरीर के लगभग समस्त महत्त्वपूर्ण जोड़ बाहरी उद्दीपक से उत्तेजना ग्रहण नहीं करते। ऐसी स्थिति में हमारे नेत्र जो देखते हैं उसका बढ़ा विवरण, अतिरंजित चित्रण रासायनिक व वैद्युत संकेतों के रूप में मस्तिष्क को भेजने लगते हैं, परन्तु संवेदना के अन्य भागों से मस्तिष्क को समान तथा संगत संदेश नहीं पहुँचते। विभ्रम की यह क्षणिक स्थिति सारे साम्यावस्था-तंत्र को गड़बड़ा देती है जो सामान्य स्थितियों में सुचारु रूप से कार्य करता है ।