चक्कर लगाते समय यकायक रुकने से कमरा घूमता हुआ क्यों दिखाई देता है? WikiHow Hindi.

चक्कर लगाते समय यकायक रुकने से कमरा घूमता हुआ क्यों दिखाई देता है?

chakkar lagate samay yakayak rukne se

गति का बोध आन्तरिक कान द्वारा होता है, जिसमें तीन अर्ध-वर्तुल नलिकाएँ तरल पदार्थ से भरी होती हैं। इन्हें एन्डोलिम्फ कहते हैं जो एक-दूसरे के लम्ब कोण पर होती हैं। चक्कर लगाते समय गति की दिशा किसी एक नलिका के समानान्तर होती है। समानान्तर गति से उस नलिका में उपस्थित द्रव भी गतिशील हो जाता है। इससे रोम- कोशिकाएँ सक्रिय होकर मस्तिष्क को संकेत भेजती हैं और गति का ज्ञान होता है। यकायक रुक जाने के बाद भी नलिका में तरल पदार्थ गति में ही रहता है और उत्तेजित रोमकोशिकाएँ लगातार संकेत भेजती रहती हैं। परिणामस्वरूप स्वयं और वातावरण के मध्य एक आपेक्षिक गति का भ्रम होता है। यदि एक दिशा में घूमने के पश्चात् तुरन्त विपरीत दिशा में चार-पाँच चक्कर लगा लिये जाएँ तो नलिका-तरल विश्राम में आ जाता है जिससे रुकने के पश्चात् वातावरण घूमता हुआ प्रतीत नहीं होता।

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