जल के प्रयोग से पीड़ा क्यों शांत हो जाती है?
पीड़ा संवेदना का एक संलक्षण है जिसका सचेत अवस्था में अनुभव होता है। क्षतिग्रस्त ऊतकों से पीड़ा-आवेग विशेष पीड़ावाहक तंत्रिका-तन्तुओं द्वारा मस्तिष्क में उच्चतर केन्द्रों में पहुँचते हैं। अधिकांश मलहमों में हल्की क्षोभक औषधें जैसे टर्पेन्टाइन तैल, मैथिल सैलिसिलेट मेंथॉल आदि होती हैं जो प्रयोग करने के स्थान पर संवेदी तंत्रिका-सिरे को उत्तेजित करती हैं। गहरी मांसपेशियों से आने वाली आवेगों से सर-दर्द होता है। मलहम के प्रयोग के पश्चात् त्वचा से आने वाले संवेदी आवेग का बाँध सिर की गहरी मांसपेशियों से आने वाले आवेगों के मार्ग में हस्तक्षेप करता है और इस प्रकार आवेगों का संचारण आंशिक रूप से और कभी-कभी पूर्णतः रुक जाता है। इससे पीड़ा समाप्त हो जाती है। उष्मा एक बहुत अच्छा प्रति-क्षोभक है। त्वचा के पीड़ा-तन्तु ऊष्मा से उत्तेजित होते हैं। प्रतिवर्त चाप मेरुदण्ड द्वारा मांसपेशी के नीचे और रक्त वाहिकाओं में पहुँचते हैं। इससे रक्त-वाहिकाएँ फैल जाती हैं और मांसपेशी ऊतकों में पीड़ा के कारक को हटाने में सहायक होती है। मांसपेशियों में संकुचन और ऐंठन से पीड़ा और भी उग्रतर हो जाती है। पीड़ा का कारक हटने के पश्चात् विषैले प्रभाव समाप्त हो जाते हैं और पीड़ा शांत हो जाते है।