छिपकली की पूंछ कट जाने के पश्चात् सर्प की तरह क्यों तड़पती हैं ?
जब कोई शत्रु छिपकली पर आक्रमण करता है तो यह अपनी पूंछ तोड़कर भाग जाती है। शत्रु पूंछ के तड़पने से विस्मित रह जाता है। कुछ दिनों के पश्चात् नई पूंछ पुनः उत्पन्न हो जाती है। छिपकली में पूंछ तोड़ने को ऐच्छिक सामर्थ्य होती है। पृथक्करण केवल रीढ़ में एक विशिष्ट भाग में पहले से उपस्थित एक दराद से होता है जहां की आयोजित मांसपेशियां सरलता से पृथक हो जाती हैं। पूंछ के टूटने के पश्चात् रक्त-वाहिकाओं के चारों ओर मांसपेशियां संकुचित होकर इनके सिरों को बन्द कर देती हैं जिससे अधिक रक्त का स्राव नहीं होता। ऐसी घटना भंगुर तारा, केकड़ा, व महाचिंगट में भी होती है। जब कोई शत्रु इनकी टांग पकड़ता है तो ये अपनी टांग को झटका देकर भाग जाते हैं। सुरक्षा की यह क्रियाविधि इन जन्तुओं को जीवित रखने में सहायता करती है। पृथक होने के पश्चात् पूंछ की मांसपेशियों में ऐंठन होती है जो अलग तंत्रिका द्वारा नियंत्रित होती है । अन्त में तंत्रिका थक जाती है। और संकेत भेजना बन्द कर देती है अथवा मांसपेशियों में संचित ऊर्जा समाप्त हो जाती है। तब पूंछ गति करना बन्द कर देती है।