फोटोस्टेट मशीन कैसे कार्य करती है?
इस प्रक्रिया का आविष्कार संयुक्त राज्य अमेरिका में 1930 में कार्लसन ने किया था। उसने अपने जीरोग्राफिक संयंत्र में एक प्रकाश-सुचालक अर्द्धचालक का उपयोग किया। यह अर्द्धचालक प्रकाश से प्रभावित होता है-प्रकाश में रखे जाने पर विद्युत का चालक बन जाता प्रकाश के अभाव में कुचालक इस पदार्थ को चालक प्लेट पर लगाया “जाता है और चालक-प्लेट को पहले आवेशित किया जाता है। बाद में इस प्लेट पर चित्र लैंस के माध्यम से संप्रषित किया जाता है। चित्र के श्वेत भागों का प्रतिबिम्ब प्लेट के आवेश को नष्ट कर देता है। इसके विपरीत काले क्षेत्रों के प्रतिबिम्ब प्लेट पर आवेश को सुरक्षित रखते हैं। प्लेट पर हुई इस क्रिया का विश्लेषण करने के लिए चालक-प्लेट पर लगा पाउडर आवेश के वितरण में हुए परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। इस चित्र की प्रति कागज पर उतारने के लिए प्लेट पर रखा जाता है। आवेश-प्रतिरूप को कागज पर उतारने के लिए एक रंगीन चूर्ण, जैसे सेलेनियम आर्सेनिक अथवा सेलेनियम-टेलुरियम, का प्रयोग भी किया जाता है। एक विकसित तकनीक में अच्छी किस्म के संश्लेषित चूर्ण को इस्पात व क्वार्ट्ज की छोटी गेंदों पर लगाया जाता है। घर्षण से यह चूर्ण विद्युत्-आवेश उत्पन्न करता है। बाद में चालक-प्लेट को अवेशित किया जाता है। गेंद के गति करने से संश्लेषित चूर्ण व गेंद एक-दूसरे पर आवेश चढ़ा देते हैं। इन सूक्ष्म गैंदों पर एक विशेष प्रकार के प्लास्टिक की परत चढ़ी होती है। यह आवेश प्लेट के आवेश का विपरीत होता है।