रेडार कैसे कार्य करता है?
How does radar work?
रेडार (रेडियो संसूचन एवं सर्वेक्षरण) के द्वारा रेडियो तरंगों की सहायता से, जो 186,000 मील प्रति सेकेंड की गति से चलती है, दूर की वस्तुओं की स्थिति, उनकी दूरी तथा चलने की दिशा का पता लगाया जाता है। इसके दो मुख्य भाग, प्रेषी तथा ग्राही होते हैं, जो एक ही स्थान पर एक ही एरियल से संबंधित होते हैं। प्रेषी में एक विशेष यंत्र, मेग्नेट्रॉन होता है जिसके द्वारा लगभग एक से० मी० तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय रेडियो तरंगें उत्पन्न की जाती हैं। ये तरंगें सर्चलाइट की किरणों की भांति एक सीधे तथा पतले पुंज में बहुत दूर तक चली जाती हैं तथा मार्ग में इनकी शक्ति क्षीण नहीं होती। ये तरंगें लगातार नहीं भेजी जातीं। लगभग 1/1000 सेकेंड के अंतराल में तरंगों के स्पन्द भेजे जाते हैं।
प्रेषी द्वारा भेजी गई तरंगों के संकेत जब मार्ग में किसी वस्तु (वायुयान, रॉकेट, पहाड़ आदि) से टकराते हैं तो प्रतिध्वानि की भांति परावर्तित होकर उसी एरियल पर लौट आते हैं तथा ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिये जाते हैं। ग्राही से एक कैथोड-किरण-दोलन-लेखी जुड़ा रहता है जिससे प्रेषित तथा परावर्तित दोनों तरंग-स्पन्द प्राप्त होते हैं। दोलन-लेखी की X-प्लेट पर एक उचित समयाधार वोल्टेज लगा होता है जिसके कारण संकेत प्रकाश-बिन्दु-दोलन-लेखी के पर्दे पर एक चमकीली क्षैतिज रेखा बनाता है। प्रेषित अथवा परावर्तित तरंग-स्पन्दों को एक प्रवर्धक (Am- plifier) के द्वारा दोलन-लेखी की प्लेटों पर आरोपित किया जाता है। अतः जिस समय प्रेषी से तरंग-स्पन्द भेजा जाता है, उसी क्षण दोलन-लेखी के परदे पर बनी क्षैतिज रेखा के बाएँ सिरे पर एक शीर्ष प्रकट होता है। जब यह तरंग-स्पन्द वायुयान से परावर्तित होकर लौटता है तो क्षैतिज रेखा पर आगे चलकर दूसरा शीर्ष प्रकट होता है। दोनों शीर्षों के बीच की दूरी ज्ञात करके विमान की दूरी ज्ञात की जाती है।