ट्यूबलाइट कैसे कार्य करती है?
How does tubelight work?
ट्यूबलाइट एक गैस-विसर्जक टूयूब है जिसके प्रकाश के आउटपुट में एक विशिष्ट माध्यम द्वारा वृद्धि की जाती है। इसके प्रत्येक छोर पर ऑक्साइड से विलेपित टंग्स्टन का सर्पिल तंतु होता है। टूयूब की आन्तरिक भित्ति भ्राशमान अथवा स्फुरदीप्ति (Fluoresent) धातु के लवणों, जैसे कैल्सियस, टंग्स्टेट, जिंक सल्फेट, जिंक सिलिकेट आदि से विलेपित होती है। ट्यूब में अत्यन्त निम्न दाब पर पारद (Mercury) की वाष्प भरी होती है। उत्तापदीप्त इलैक्ट्रोड से निष्कासित होने वाले इलैक्ट्रॉन पारा के परमाणुओं से टकराकर विकिरण उत्सर्जित करते हैं। जिसके अधिकांश भाग में न दिखाई देने वाले प्रकाश की पराबैंगनी किरणें होती हैं।
पारद-वाष्प की किरणें स्पैक्ट्रम के हरे और नीले रंग के भाग में स्थित होती हैं और ये हल्का प्रकाश उत्पन्न करती हैं। पराबैगनी प्रकाश भित्ति के विलेपित भ्राशमान पदार्थ से टकराकर स्पैक्ट्रम की दृष्टिगोचर सीमा में लम्बी तरंगदैर्ध्य के विकिरण विसर्जित करता है। इस प्रकार प्रकाश-टूयूब लाइट के तंतु द्वारा उत्पन्न नहीं होता। भ्राशमान पदार्थ के उपयुक्त चुनाव से इच्छानुसार कोई भी रंग उत्पन्न किया जा सकता है। ट्यूब लाइट एक प्रतिकारी (चोक) और स्टार्टर द्वारा परिचालित होती है। जो लैम्प को वोल्टेज के हानिकारक चढ़ाव से सुरक्षित रखते हैं। स्टार्टर-बल्ब के भीतर निम्न दाब पर कोई अक्रिय गैस भरी होती है। बल्ब के भीतर दो धातुओं के मिश्रण की बनी दो पत्तियाँ होती हैं जिन पर दो स्पर्श-बिन्दु होते हैं।
जब पत्तियाँ ठंडी होती हैं तो स्पर्श-बिन्दु अलग हो जाते हैं। नली के भीतर परिपथ में विद्युत वाहक बल के कारण पत्तियाँ गरम होकर फैलती हैं जिससे स्पर्शबिन्दु-एक दूसरे से सट जाते हैं। इससे नली का परिपथ पूर्ण हो जाता है और फिलामेंट गरम होने लगता है। स्टार्टर के भीतर विद्युत-विसर्जन बन्द होने से पत्तियाँ ठंडी हो जाती हैं। स्पर्शबिन्दुओं के अलग होते ही विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण के कारण चोक में अति उच्च मान का क्षणिक विद्युत कुचालक वाहक बल उत्पन्न होता है जिसके कारण पारे की वाष्प गरम होने लगती है। जैसे ही एक बार तंतु गरम होकर चमकते हैं, स्टार्टर की पत्तियों में प्रसार के कारण आपस में संबंध टूट जाता है और चोक पर प्रेरण के फलस्वरूप एक क्षण के लिए उच्च वोल्टेज उत्पन्न होता है। स्टाटर-बल्ब में कम दाब पर भरी अक्रिय गैस कुछ चालक होती है जिसके द्वारा परिपथ में बहुत कम धारा बहती है और ट्यूबलाइट जलती रहती है। इस प्रकार ट्यूबलाइट अत्यन्त आर्थिक है। अधिक प्रकाश-उत्सर्जन के कारण ट्यूबलाइट के आनन्दायक प्रकाश से हल्की छाया उत्पन्न होती है।