ध्वनिकी
Acoustics
ध्वनि संचार के दो माध्यम ज्ञात थे। शावरा स्वामी इसको हवा कहते थे जबकि उद्योतकर ने इसे ईश्वर माना। दोनों ही वर्गों के विद्वानों को तरंग-गति का ज्ञान था।
प्रतिध्वनियों का विश्लेषण विज्ञान-भिक्षु ने किया था और वात्स्यायन, उद्योतकर तथा वाचस्पति ने ध्वनियों के गुणों को परखा था।
संगीत के स्वरों और अन्तरों की गणना संगीत-रत्नाकर (1210-47) तथा संगीत-दर्पण (1560-1647) में की गई है। खिंचे तारों के कम्पन का सिद्धान्त पाइथागोरस का बताया जाता है, किन्तु यह सिद्धान्त इनसे पहले ही भारतीयों को ज्ञात था ।