मछलियाँ कैसे सोती हैं?
मछलियों में पलकें नहीं होतीं। ये अपनी आँखें खोलकर ही सोती हैं जिसकी पुष्टि इनके मस्तिष्क से आने वाले संकेतों से होती है। कुछ मछलियाँ रात्रि में बालू में खोदे गए गर्त में सोने चली जाती है। रेसस मछली सोते समय अपनी त्वचा से उत्सर्जित गाढ़े पदार्थ द्वारा अपने चारों ओर पारदर्शक आवरण बनाती है जिसकी गंध शत्रुओं को इसके पास नहीं आने देती। कुछ शार्क निद्रित अवस्था में भी निरन्तर तैरती हैं। क्रेपसकुलर व अन्य निशाचर मछलियों के रेटिना में सुग्राही शलाका अधिक व शंकुओं की मात्रा अल्प होती है। शंकु रंगों के देखने में समर्थ होती हैं और ये उज्ज्वल प्रकाश में ही सक्रिय होती हैं। शलाका से अंधकार में भी देखा जा सकता है। बिल्ली व चीते के नेत्र की भित्ति में विकसित क्रोइड की परत ‘टेपीटम ल्युसिडम’ होती है जिसकी कोशिकाओं में ग्वानिन क्रिस्टल उपस्थित होते हैं। ये उस प्रकाश को परावर्तित करती है जिसने पहले से रेटिना प्रकाश-संवेदन कोशिकाओं में प्रवेश किया हो। इस प्रकार बिम्ब की उज्ज्वलता में वृद्धि हो जाती है। अनेक मछलियों में इस प्रकार के टेपीटा होते हैं।